कैसे भुलाये हम तेरी यांदो को
रह रह कर दिल में उभर आती है !!
जब जब गिरते है आँखों से आंसू
कागज पर तेरी तस्वीर बन जाती है !!
वो यादे, वो बाते कुछ जानी अंजानी सी
न जाने क्यों अब हर पल मुझे सताती है !!
अरसा बीत गया तेरी वो मधुर आवाज सुने
मिस्री सी कानो में घुलती बोली याद आती है !!
देखा था एक ख़्वाब रूबरू मिलन का
वो मुलाकात की कसक आज भी सताती है !!
खोजता हूँ अपने आप में उस खामी को
जो तुझ से जुदाई की वजह बन जाती है !!
हमने तो समझा लिया है अब इस दिल को की
कुछ मजबूरिया भी दूरियों की वजह बन जाती है !!
माना की फास्लो के दरमियान दर्द बढ़ता है
मगर दर्द भी कभी ख़ुशी की वजह बन जाती है !!
तेरे किस्से है, या लगी गुमनाम चोट कोई,
पुरवाई चले तो तुरत असर कर जाती है !!
मन में घुमड़ते है यादो के बादल आज भी
बारिश बनकर इन नयनो से बरस जाती है !!
इस तरह घुलमिल गयी हो “धर्म” की साँसों में
जैसे दूध की चन्द बून्द पानी को अमृत बना जाती है !!
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डी. के. निवातियाँ ……………….
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