वो कहते है ये करने से
वो करने से इंकलाब आएगा
पर अगर जागेंगे ही नहीं
तो सपनो में कौनसा खलल पड़ जायेगा
बंध आँखों से तो
फिर हर कोई महल बनाएगा
सपनो के चूल्हे जलेंगे
अरमानो के पकवान पकेंगे
पर जब सच्च में भूख लगेगी
तो सपनो से पेट कहाँ भर पायेगा
चिलचिलाती धुप में ठंडक
कौनसा सपना लाएगा
यूँही गर सपनो की दुनिया में खोये रहोगे
T.V., internet
जैसी technology में कैद रहोगे
तो इन रंगिनिओ के पीछे
लोगों के दर्द कहा पढ़ पाओगे
ज़िन्दगी की सच्चाई के
रूबरू कैसे आओगे
इन खयालो की रंगीन दुनिया से
कब तक जी बहलाओगे
इन सपनो के चूल्हो पर
कितने इंकलाब के खाब पकाओगे
कब तक खुद को बहलाओगे
कब तक उठो बोलो कब तक कब तक
रविवार, 24 जनवरी 2016
सपनो के महल
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