शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

दोस्ती ऐसी भी

न कोई नाम रहेगा, न कोई निशान रहेगा |
कुछ इस तरह मिटाएगे यादें तुम्हारी,
की हर रास्ता भी अनजान रहेगा ||
हर बार टूटते रिश्ते को बचाया है,
तुम्हारे लिए आत्मसम्मान को झुकाया है |
पर आज तो मेरे सब्र का ही इम्तिहान ले लिया,
न की थी ऐसी उम्मीद,
तुमने इसे दुश्मनी का नाम दे दिया ||
सुना था कुछ खास होता है ये रिश्ता,
सब दूर हो जाए फिर भी पास होता है ये रिश्ता |
बहुत खूबसूरती से इस ज़िंदगी को दोस्ती से मिलाया,
दोस्ती ने भी पहले ज़िंदगी को बहलाया ||
फिर तोडा कुछ इस तरह से,कि ज़िंदगी उठ न सके |
बिखर जाए अंधेरो की तरह, फिर कभी खिल न सके ||
पर नादान है दोस्ती, उसको ये एहसास नहीं |
ज़िंदगी कोई फूल नहीं, जो मुरझा जाए,
ज़िंदगी वो पत्थर है, जो घिसकर और चमक जाए ||
ये इतनी नाज़ुक भी नहीं कि, भावनाओ में जकड कर टूट जाएगी |
कोई रहे न रहे साथ इसके, पर ये मंजिल तक जरूर जाएगी ||
रचयिता सोनिका मिश्रा

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