पीड़ा गर अक्षर बन जाए
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ….
आँसू से उसको लिख दूँ
कंपित अधरों से लय लेकर
अपने गीतों को गूँथ लूँ
इन गीतों को सुन जो रोये
समझूँ वो ही अपना है
उनकी गीली पलकों में भी
उतरा अपना सपना है
इन सपनों का मधुरस लेकर
आँसू भी मधुमय कर लूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ….
मेरा आँसू , उसका आँसू
गंगा जमुना संगम है
तीरथ बने जहाँ मन मेरा
आँसू बहता हरदम है
दुःख का अर्जन , सुख का तर्पण
मन तीरथ में ही कर लूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ….
आँसू है पीड़ा का दर्पण
इसमें अपनी है सूरत
कुछ रुकते , कुछ बहते आँसू
रचते पीड़ा की मूरत
करने नव सिंगार नयन का
आँखों में आँसू भर लूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ….
नम पलकें हैं दुःख की कविता
आँसू बहना सरगम है
अश्क बने हैं मृदुल शायरी
दिल ही जिसका उदगम है
आँसू तो है नन्हे शिशु सा
उसे चूम मन हल्का कर लूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए ….
जग के कोलाहल में क्रन्दन
करुणा का है नित आकर्षण
और सिसकियाँ रुंधे कंठ की
दुःख की है मौन समर्पण
रोक सिसकियाँ , आँसू पीकर
इसकी क्यूँ हत्या के दूँ
पीड़ा गर अक्षर बन जाए
आँसू से उसको लिख दूँ
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे
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