टूटी साँसों की वीणा पर
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं
बिखरे उलझे इन तारों पर
सुर मधुर उगाये जाते हैं
कुछ दीपक हैं जलते बुझते
विरह मिलन के सपनों से
धुप छाँव में चलते रहते
बिछुड़े जब जब अपनों से
टूटी बिखरी आशाओं का
नव गीत सजाये जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं
कुछ शब्दों के नन्हे पलने पर
भाषा क्यूँ कर सोती है
क्यों छंद बंध के छलने पर
लोरी करुणामय होती है
जुगनू की सी नन्ही इच्छायें
लयबद्ध बनाये जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं
मायावी घुंघट जीवन का
आँधी में उड़ जाता है
रूप सलोना सावन का
दुःख की बदली बन जाता है
कंठ नहीं , पर नम पलकों से
हम गीत सुनाये जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं
थके पंख की बुलबुल पूछे
मधुमास नहीं क्यूँ आता है
कोयलिया से खग गण रूठे
पतझर उसे क्यूँ भाता है
माटी के तन को गति देने
हम गीत सुनाये जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं
साँसों के तिनकों को बुनकर
मृत्यु नीड़ बनता जीवन
मेघ रूप में अश्रु बरसकर
मिटा रहे हर एक तपन
मृदंग की मधुर थाप लिए
हम अश्रु गिराए जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे
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