गुरुवार, 9 जुलाई 2015

टूटी साँसों की वीणा पर

टूटी साँसों की वीणा पर

टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं
बिखरे उलझे इन तारों पर
सुर मधुर उगाये जाते हैं

कुछ दीपक हैं जलते बुझते
विरह मिलन के सपनों से
धुप छाँव में चलते रहते
बिछुड़े जब जब अपनों से

टूटी बिखरी आशाओं का
नव गीत सजाये जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं

कुछ शब्दों के नन्हे पलने पर
भाषा क्यूँ कर सोती है
क्यों छंद बंध के छलने पर
लोरी करुणामय होती है

जुगनू की सी नन्ही इच्छायें
लयबद्ध बनाये जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं

मायावी घुंघट जीवन का
आँधी में उड़ जाता है
रूप सलोना सावन का
दुःख की बदली बन जाता है

कंठ नहीं , पर नम पलकों से
हम गीत सुनाये जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं

थके पंख की बुलबुल पूछे
मधुमास नहीं क्यूँ आता है
कोयलिया से खग गण रूठे
पतझर उसे क्यूँ भाता है

माटी के तन को गति देने
हम गीत सुनाये जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं

साँसों के तिनकों को बुनकर
मृत्यु नीड़ बनता जीवन
मेघ रूप में अश्रु बरसकर
मिटा रहे हर एक तपन

मृदंग की मधुर थाप लिए
हम अश्रु गिराए जाते हैं
टूटी साँसों की वीणा पर
हम गीत सुनाये जाते हैं
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे

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