शून्य लोचन हो कर जब मैं सोचता हूँ कभी कभार
एक ही दृश्य उभर आता है हृदय मैं बार बार
न थी हमें और शायद न तुम्हे आस इस बात की
की होगी एक मुलाकात बस नाम मात्र की
झक झोर गए हो तोड़ गए हो हमको इस कदर
रहती नहीं खबर हमें अपने आप की
हो चले है बेसुध इस कदर याद मैं आपकी
कट रही है ज़िंदगी बगैर ज़ज़्बात के
पर गम न करना यह कह गए थे तुम
मिलंगे एक रोज वंहा पैर हम !!!!!!!!!!!!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें