गुरुवार, 9 जुलाई 2015

Wavering Moments in Life

ले चलो मेरी किस्ती को उस पार
हूँ बीच मैं फंसा हुआ, सागर मैं घिरा हुआ
उठती हुई लहरो को देख कर सिहर जाता हूँ
कोशिश करता हूँ सँभालने की मगर फिर बिखर जाता हूँ

हार गया हूँ थक गया हूँ, हो गया हूँ मैं चूर चूर
अतः समंदर, नहीं दिखाई देता, कुछ भी दूर दूर
उमड़ रहा है अतः समुन्दर जैंसे
उठता है तूफ़ान हृदय के भीतर ही वैंसे

थक गया हूँ मैं, हो गया हूँ मैं लाचार, ले चलो मेरी किस्ती को उस पार!!!!!!!!!!!!

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here Wavering Moments in Life

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें