“नयी आगाज़”
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद,
कल की नयी आगाज़ है तूँ…
जो सागर का सीना चिर दे,
जो आकाश मे गूँजे बरसों तलक,
कल की वो बुलंद आवाज़ है तूँ…
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद,
कल की नयी आगाज़ है तूँ…
ना हार खुद से इतनी जल्दी,
हौसलों को कर बुलंद अपने,
हो गरूर हर नौजवां को तुझपे,
कल की नयी वो नाज़ है तूँ…
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद,
कल की नयी आगाज़ है तूँ…
भर दे सब मे जो जोश-ए-जुनूँ,
हर दिल का अंधियारा दूर करे,
खुद मिट के भी “इंदर” जो औरों को उजाले दे,
कल की नयी वो आफ़ताब है तूँ…
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद,
कल की नयी आगाज़ है तूँ…
Acct- इंदर भोले नाथ…….(IBN)
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