बातें कुछ अनसुनी ,अनकही ,
रह गई मन की मन में ही।
बातें जो तुमसे करनी थी ,
बातें जो तुमको कहनी थी ,
तुम संग हँस कर सहनी थी।
तुम बिन भार बन गई है ,
बातों का अम्बार बन गई है,
मन का गुबार बन गई हैं।
बातें, आधी रात में उठ कर ,
मन में करती हैं गड़बड़ ,
मुझ को बड़ा सताती हैं।
बातें सारी रात जगाती हैं ,
कभी कभी वोह तो हसाती हैं,
कभी कभी युः ही रुलाती हैं।
इन बातों का क्या तो करूँ मैं ,
तुम बिन कैसे धीर धरु मैं,
क्यूँ सबको परेशान करूँ मैं।
बातें जो तुमसे करनी थी ,
बातें जो तुमको कहनी थी ,
किसी और से कैसे कह दूँ।
वैसे भी किसी ने कहा है ,
कि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी,
लोग बेवजह ,उदासी का सबब पूंछेंगे,
किस किस को हल्कान करूँ मैं .
बातें कुछ अनसुनी ,अनकही ,
रह गई मन की मन में ही।
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