मंगलवार, 5 जनवरी 2016

बातें

बातें कुछ अनसुनी ,अनकही ,
रह गई मन की मन में ही।

बातें जो तुमसे करनी थी ,
बातें जो तुमको कहनी थी ,
तुम संग हँस कर सहनी थी।

तुम बिन भार बन गई है ,
बातों का अम्बार बन गई है,
मन का गुबार बन गई हैं।

बातें, आधी रात में उठ कर ,
मन में करती हैं गड़बड़ ,
मुझ को बड़ा सताती हैं।

बातें सारी रात जगाती हैं ,
कभी कभी वोह तो हसाती हैं,
कभी कभी युः ही रुलाती हैं।

इन बातों का क्या तो करूँ मैं ,
तुम बिन कैसे धीर धरु मैं,
क्यूँ सबको परेशान करूँ मैं।

बातें जो तुमसे करनी थी ,
बातें जो तुमको कहनी थी ,
किसी और से कैसे कह दूँ।

वैसे भी किसी ने कहा है ,
कि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी,
लोग बेवजह ,उदासी का सबब पूंछेंगे,
किस किस को हल्कान करूँ मैं .

बातें कुछ अनसुनी ,अनकही ,
रह गई मन की मन में ही।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here बातें

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें