Gazal
क्यूँ कहते हो कोई कमतर होता है
दुनिया में इन्सान बराबर होता है
पाकीज़ा जज़्बात है जिसके सीने में
उसका दिल भरपूर मुनौअर होता है
ज़ाहिद का क्या काम भला मैख़ाने में
मैख़ाना तो रिंदों का घर होता है
जो तारीकी में भी रस्ता दिखलाए
वो ही हमदम वो ही रहबर होता है
टूटा -फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही
अपना घर तो अपना ही घर होता है
ताल में पंछी पनघट गागर चौपालें
कितना सुन्दर गाँव का मंज़र होता है
कैद करो न इनको पिंजरों में कोई
अम्न का पंछी “रज़ा” कबूतर होता है
kiyun kahte ho koi kamtar hota hai
by shayar salimraza rewa 9981728122
Read Complete Poem/Kavya Here क्यूँ कहते हो कोई कमतर होता है - GAZAL SALIM RAZA REWA
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