रविवार, 3 जनवरी 2016

usaki wo eyesights

आज मौसम ने कुछ अजब सा रंग बदला हे
कभी था गर्मी कभी था सर्दी ये न जाने कैसा ढंग बदला हे
जो कभी मरते थे हमसे मिलने के लिए
आज वो ही बेवफा किसी और से मिलने के लिए तरसा हे
आज रौ की गौ की हसु हर अदा में मेरे डिल का आशु बरसा हे
कभी थी हमसे जो मोहब्बत उनकी वो बड़ी अच्छी सी लगती थी
जो हमे देख-कर गाव के हर गली-मोहल्लो में भगति थी
कभी हा जी ओ जी ,कभी प्यार से गले लगाया करती थी
कभी काजल कभी लिप-ग्लॉस केवल हमारे लिए लगाया करती थी
सह्लिया पूछती थी-की तेरे सैइय्या तो श्याम रंग हे ,तुजे कैसे वो भईगे
वो बोलती थी-श्याम रंग मेरे पर घन-घोर रूप से छाएंगे
उस रत के मेरे सईया जी मुझे घाना प्यार धिखलायेगे
प्यार की हर एक रह पर मुझे नया पथ सिक्ल्ह्लायेगे
जब दो काया मिल जाती हे तो अगन अगन सी लगती हे
फिर क्या हुआ वो श्याम रंग हे टेक्नोलॉजी सर्जरी सी बदल सकती हे
में सर्जरी फिर उनके चहरे की करवा दूंगी
में उनके इस श्याम रंग को घोड़े से भरवा दूंगी
जब पहली बार उसने हमको कमरे में अकेल;इ बुलाया था
आखो की उस मदहोशी को हमने आखो से लगाया था
फिर प्यार से उनके ओष्ठों की वो चूमने की अदा थी
पापा ने हमको देख लिया ज़िन्दगी भर की सजा थी

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