नमामि गंगे! ( कविता)
चलो ! आज एक क़सम
गंगा -पूजन की एक रस्म बनायें .
नमामि गंगे !की जयकार कर ,
अपने दिन की शुरुआत करें .
विश्व में गूंजे गंगा- महिमा का गान ,
इस प्रकार हर भारतीय गुणगान करें.
मईया की पवित्रता व् निर्मलता हेतु ,
इसकी स्वच्छता का प्रयास करें .
सच्चाई और प्रतिबद्धता की है यह मूरत ,
क्यों न इसे ही छू करआज सौगंध खाएं .
स्वर्ग से उतरी इस पुण्य-दायिनी देवी को ,
पाप-मोचनी , मुक्ति दायिनी कहकार बुलाएँ.
इसकी आरती उतार कर , श्रद्धा के पुष्पों से ,
नमन-पूजन कर इसके प्रति कृतज्ञता दर्शायें .
नमामि गंगे! नमामि गंगे जयकार कर ,
अपने जीवन को सफल व् आदर्श बनायें .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें