धर्म बदलो ये अहम नहि पर मन बदलना चाहिये
सर्त हैं ख्याल हर ईक जन बदलना चाहिये
गीता पढे कुरान या अन्य कोई गर्न्थ महान
सत्य प्रेम विश्वास मधुरता के करते सब रस बखान
महत्व हैं जब हर एक में ये रस उतरना चाहिये
धर्म…………..
वस्ञ पहन काला सफेद गेरूआ हो आखिर क्या हैं भेद
मंनदिर ,मस्जिद गुरूद्वारे या चर्च मे अपना मस्तक टेक
कटा ले मूछ बढा ले डाढि चाहे न काट अपनी केश
फर्क हैं जब तेरे स्वामि में विश्वास उमरना चाहिये
धर्म…………..
धर्म सभि हैं जग भवर मे तैरति समगति नईया
सवार हो हम राह ना भटके मन हि इसका खेवइया
धर्म बदला नईया बदलि खेवइया तो वहि रहि
खेवइया जब वहि रहि तो नईया आखिर क्यो बदलि
बदलो मगर अहम को बदलो जन जन प्रेम उभरना चाहिये
धर्म…………..
रविवार, 21 जून 2015
धर्म बदलो ये अहम नहि
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें