1.गिरे जो साख से पत्ते तो मुरझाने लगे।
अपनों से जुदा जीना कुछ ऐसा ही तो है।
2.उसने लुटा दी शौक से अस्मत ऐसा कहते हैं सभी।
कभी अपने बच्चों को भूखा तड़पते देखो तो सही।
3.बेचैन था कुछ इस तरह की क्या खो दिया मैंने।
तुम्हें देखते ही इक झलक सब मिल गया जैसे।
4.नदी प्यासी रही ताउम्र,बेवफा पानी भी नहीं।
हसरतों को लुटा देना ही तो सच्ची मोहब्बत है।
5.कूड़े में फेंक दिए पुराने खिलौने,नए लाने की चाह में।
सोचो एक गरीब का बच्चा तो माटी से खेलकर खुश है।
वैभव”विशेष”
Read Complete Poem/Kavya Here शेर अर्ज है।
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