कोयल हो गई गुम
कौआ नहीं करता काँव
आँगन में उदासी छाई
सुना-सुना है अब गाँव
सुख गई है नदी
टूटी पड़ी है नाव
पनघट भी वीरान है
नहीं कुदरत की ताव
न शाम सुहानी है
उजड़ गया अमवा गाँव
राहगीर ढूंढ़ते फिरते है
बरगद-पीपल की छाव
न बरगद की झूला
न नीम की छाव
रंग बसंत की यहाँ
नहीं पड़ता अब पड़ाव
बगीचे में गुलजार नहीं
न पंछियो की शोर गुल
काली घटा सावन बरखा
गाँव की राह गई भुल
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