- कर के फना अपनी जान
हम वतन से विदाकर चले ,
अब कैसे तुम इसे संवारो
ये हक़ तुम को अदा कर चले !!सींचकर अपने लहू जिगर से
हमने आजादी का वृक्ष लगाया
कैसे फले फूलेगा बीच शत्रुओ के
ये भार तुम्हारे हवाले कर चले !!मिटा देना या सजा लेना
लाज इसकी तुम्हारे हाथ,
अब बचा लेना या गँवा देना
ये काम तुम्हारे नाम कर चले !!खिलती कलि सी इसकी जवानी
बढ़ती उमरिया की चढ़ती रवानी
दुनिया की आँखों में ये खटकती
इसकी आन तुम्हारे नाम कर चले !!इस दुनिया का चिराग ये भूमि
प्रसाद है इसके चरणो की धूलि
सेवा में इसकी मर मर जाऊं
ऐसा प्रण हम तुमसे कर चले !!कर के फना अपनी जान
हम वतन से कर विदा चले ,
अब कैसे तुम इसे संवारो
ये हक़ तुम को अदा कर चले !!डी. के, निवातियाँ _____@@@
Read Complete Poem/Kavya Here वतन से विदाकर चले ..... (देशभक्ति गीत)
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