माना की तुम हो दूर बहुत मुलाक़ात तो फिर भी होती है।
तन्हा-तन्हा सी रातों में कुछ बात तो फिर भी होती है।
चाँद सितारे और गुलशन बस एक शिकायत करते हैं
समझा लो मन,अश्कों की बरसात तो फिर भी होती है।
चाहत के नुकीले नस्तर से मैंने संगे दिल को तराशा था
पत्थर बन कर ही साथ सही वो साथ तो फिर भी होती है।
समझा खुद को माहिर मैंने शतरंज बिछा दी चाहत की।
मुमकिन नहीं जीतूँ हर बाजी,मात तो फिर भी होती है।
मैं नहीं हूँ कोई जादूगर बस इक सच्चा दिल है सीने में
भूल कर भी याद मैं आऊँ ये करामात तो फिर भी होती है।
वैभव”विशेष”
Read Complete Poem/Kavya Here बात तो फिर भी होती है।
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