लोग एक चेहरे पे कई नकाब रखते है !!
दिलो में उठता दहकते अंगारे का शैलाब !
लबो पे दिखावे की झूठी मुस्कान रखते है !!
बरपा लो जी भर के सितम दीवाने पर !
हम भी तुफानो से लड़ने का शौक रखते है !!
कैसे मिटा पाओगे यादो को इस दिल से !
वफ़ा की मसाल सीने में जला के रखते है !!
चिराग जान कर बुझा न पाओगे “धर्म” को !
हम भी घर में अपने कई आफ़ताब रखते हैं !!
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डी. के. निवातियाँ ___________@@@
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