- उम्र भर जिस बेटे के दरस को
तरसता रहा बूढा बाप !
उसके मरने के बाद तर्पण करने
दानवीर बना आज लाल !!नजरे गड़ाकर बैठा रहता था चौबारे में
जिसके इन्तजार में बूढा बाप !
उसकी अस्थियो की पूजा करता देखा
वो बदनसीब नौजवान !!ढाँपे रक्खा बदन को मात्र एक चादर से
ताउम्र फटेहाल रहा बूढा बाप !
बेटे ने उसकी याद में आयोजन कराया
तस्वीर पर चढ़े चंदन माल !!जीवन भर पड़ा रहा अनाथ आश्रम में
जो बिखर बूढा बाप !
आज बेटे ने हवेली में अपनी लगायी
स्वर्ण जड़ित चित्र लाजबाब !!दो जून की रोटी को घर के सुकून में
तरसता रहा बूढा बाप !
बेटे ने मोहल्ले में उसके नामपर आज
लगाया लंगर बे हिसाब !!भटकती आत्मा से बिलखता देखता है
आज भो वो बूढा बाप !
जीवन में सब कुछ मिले तुझको
एक मांगे मिले हजार !!दिल से निकलता उसके, देता आशीष
Read Complete Poem/Kavya Here तरसता बूढा बाप ! !
आज भी रोता बूढा बाप !
न तरसे तू कभी जैसे मै भटका हूँ
जीवन भर लाचार !!
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डी. के निवातियाँ __@@@
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