तुमने सोचा है कभी ……. (कविता)
हे मानव !
तुमने सोचा है कभी ,
तुम पूर्णत: हो नारी पर निर्भर .
जन्म से मृत्यु तक तुम्हारे
जीवन- सञ्चालन में है वो तत्पर.
सर्वप्रथम है तुम्हारी जननी ,
जिसने तुम्हें जन्म दिया .
भटक रहे होते तुम अंधेरों में,
तुम्हें धरती पर लाकर जीवन दिया.
तुम्हारा पालन-पोषण किया ,और
तुम्हें शिक्षा व् संस्कार देकर इंसान बनाया.
तुमने कामयाबी की सीढियाँ चढ़ी हैं तो ,
केवल अपनी जननी के दम पर.
जननी की गोद से तुम उतरे तो ,
तुम्हें गोद मिली धरती माता की .
तुम्हारे ठुमकने से लेकर दौड़ने तक ,
जिसकी मिटटी में खेलकर बड़े हुए ,
और अंत में उसी मिटटी में मिलने तक .
जीवन की ऊँचे -निचे रास्तों से परिचय
करवाती इस धरती माता का गुण-गान करो ,
तुमने जीवन-संघर्षों से उबरना सीखा
तो मात्र इस भूमि पर .
धरती पर तुम जब आये ,
प्रकृति माँ ने तुम्हें पाला .
अपने फल,अनाज , व् वनस्पतिओं ,
व् तुम्हारा पोषण किया .
और जब तुम बीमार हुए तो अपनी,
औषिधीयों से तुम्हारा उपचार किया.
अपने प्यारे-प्यारे रंगीन फूलों की खुशबू से ,
अपने घने वृक्षों की छाँव से ,
तुम्हें आनंदित किया.
अपने विशाल पर्वतों से सरंक्षित किया ,
आसमान सी छत दी आश्रय को ,
तो ताज़ी हवा दी तुम्हारी प्राण-वायु को.
तुम्हारी जीवन्तता हेतु .
सोचो कितने उपकार है इस
प्रकृति माता के तुम पर.
यह नदियाँ ,यह सागर भी हैं
तुम्हारे परम-पुजनिये अभिवाहक.
सागर देता है अमूल्य रत्न ,और
हर क्षण बदलता मौसम.
ग्रीष्म ,शीत , वर्षा ,पतझड़ और बहार ,
ताकि प्रत्येक से सामजस्य बिठाना
जीवन में सीखो तुम .
गंगा मईया व् अन्य नदियाँ तुम्हारी
बुझाती है प्यास और प्रदान करती है जल .
और चलाती है जीवन चर्या को.
मगर इस पर केवल तुम्हारा अधिकार नहीं ,
यह बहती है धरती पर प्रत्येक जिव-जंतु ,
प्राणियों ,वृक्षों व् वनस्पतियों की प्यास बुझाने
व् उनकी जीवन-रक्षा को.
फिर क्यों प्रदुषण , और गंदगी से दाग लगाया
तुमने इस जीवन-दायिनी ,मुक्तिदायिनी
मातायों की निर्मल ,पवित्र ,शुद्ध ,धवल
धाराओं चुनर पर .
जननी के अतिरिक्त तुमने
दुग्ध पान किया एक और माता का .
भोली ,मासूम मगर बेजुबान गोऊ माता का.
अपनी जीतेजी तो क्या ,
अपनी मृत्यु के बाद भी जो
निस्वार्थ सेवा करती , अपना जीवन होम करती.
एहसान मानो इस करुणामयी माता का.
तुम्हारे किसी भी आचरण से जो द्वेष नहीं करती .
तुम चाहे जैसे रखो ,कभी शिकायत नहीं करती .
तुम तो हो स्वार्थी ,स्वार्थ पूरा होने जाने पर
चाहे इसे दुत्कार दो .
या चंद पैसों की खातिर इसे
कसाई को सौंप दो .
फिर भी आह नहीं करती ,
तुम्हें श्राप भी नहीं देती .
ऐसी महान गोऊ माता ,
और ऐसे तुम अत्याचारी .
लानत है तुम पर!
तुम सुनो हे मानव , ज़रा तोलो अपना ज़मीर .
इतनी माताओं के उपकारों का तुम है ऋण ,
फिर तुम कहाँ के स्वामी और कैसे अमीर?
तुमने किया है इन प्रत्येक माताओं के साथ ,
अत्यचार ,अनाचार और व्यभिचार .
नारी ही हैं यह सब , नारी का भी .
तुमने किया जीना दुश्वार .
कल्पना करो अपने मन-मस्तिष्क में,
यदि इन सभी नारीयों का सब्र का बांध टूटा ,
तो क्या होगा?
इनकी तेजस्वी ,प्रचंड शक्तियों का हो जाये विलय
तो क्या होगा. ?
तो खबरदार ! तुम्हारे जीवन में आ सकता है प्रलय.
इसीलिए कसकर लगाम लगाओ समय रहते ,
अपने लालच , नफरत , स्वार्थपरता , छल-कपट ,
हिंसा व् दुष्टता पर.
सुनो से मानव ! अपने अभिमान -वश ,
भले ही तुम मानो या न मानो .
मगर तुम हो सर्वथा ,पूर्णत; नारी पर निर्भर.
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