गीत
महालक्ष्मी मेरी मैया तुम्हें हम याद करते हैं |
कृपा मुझ पर करो माता कि हम फ़रियाद करते हैं ||
बिना धन के धरा पर माँ न कोई मान देता है |
उसे मूरख समझते सब जो हर बलिदान देता है ||
हँसी कोई उड़ाता है कोई अपमान कर देता |
अकिंचन को न किंचित माँ कोई सम्मान देता है ||
मेरी तुमसे शिकायत है कि सज्जन क्यों यहाँ निर्धन ?
बिदूषक क्यों धनीं होकर धरम बर्बाद करते हैं ||
विवादों में फसीं विद्या धरम तो बिक गए जैसे |
निगमधारी हैं द्विज निर्धन न उनके पास हैं पैसे ||
निराले खेल तेरे हैं न मैं माता समझ सकता |
बनाया क्यों मुझे भोला भला समझूंगा मैं कैसे ?
खिलाड़ी अब बना दो माँ ये दुनिया सात रंगी है |
अनाडी से यहाँ पर तो सभी प्रतिवाद करते हैं ||
बहुत आरत हुआ हूँ मैं दया की दृष्टि अब कर दो |
मेरी झोली भरो माता कि धन की वृष्टि अब कर दो ||
हमारे छंद बनकर मंत्र तेरी कीर्ति को गायें |
जगत जननी महालक्ष्मी नियति नव सृष्टि अब कर दो ||
न तिनके का मान कोई बिना धन के मैं तिनका हूँ |
करो परिपूर्ण अब धन से तेरा जयनाद करते हैं ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें