कुण्डलिया।महँगाई की आँच।
महँगाई की आँच है भौतिकता की ठण्ड ।
ताप रहें निर्मम दुखी कुछ तो बस पाखण्ड ।
कुछ तो बस पाखण्ड ठिठुरते पहन लबादा ।
ठण्ड भरे हुँकार कि कुहरा हुआ अमादा ।
राम ठण्ड की धूप हँसे लेती अंगड़ाई ।
होता कंक गरीब गात तापै महँगाई ।।
भारी लपटें उठ रही भीषण जले अलाव ।
महँगाई की आंच से कैसे करें वचाव ।
कैसे करें बचाव गरीबता रूपी ठण्डी ।
धुँआ उठे चहुँओर सुलगती वेबस कण्डी ।
राम” भरें हैं नयन धुंध कुहरा अंधियारी ।
एहि भौतिक सन्ताप उधर लपटें है भारी ।।
@राम केश मिश्र
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