उधार ले जिन्दगी, जमीन पर रेँगते रहे, ठहरी जिन्दगी के तालाब मेँ, अश्कोँ के कंकड फेँकते रहे, लम्हा बन वो गुजर गये, समय के लहर पर हम तो ठहर गये, मुश्किलोँ की धूप के तपन मेँ, अपने जलन का खुमार देखते रहे।
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