खुले गगन मे आज़ाद पंछी बनकर उड़ना , चाहत है मेरी , प्रकर्ति के हर रूप को निहारकर , उसमे मुग्द हो जाना , हसरत है मेरी, अपनी धरती माँ को हज़ारो मीलो ऊपर से देख्ना, सब कुछ भूलकर उसकी गोद मे सोना , बस छोटी सी ख्वाहिश है मेरी |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें