हाइकू।बना मज़ाक।
आयी ठण्डक
कांपती गरीबता
बना मज़ाक
जले गरीब
तापती महँगाई
बढ़ती ठण्ड
कुहरा धुंध
झांकते दरवाज़े
सहमे तन
रेंगता मित्र
ओढ़कर बादल
पश्चिम दिशा
रुकी है शाम
सुबह के ही घर
प्रकृति इच्छा
@राम केश मिश्र
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