मिटाकर अपने संस्कारो को
ये कैसा नया चिराग जलाने चले है !
लुटाकर बेशकीमती क्षण,
नये साल की खुशिया मनाने चले है !!
भूलकर गए अपने नववर्ष को
पाश्चात्य संस्कृति अपनाने लगे है !
याद नही है हिन्दू वर्षगाठ
अंग्रेजी स्टाइल में न्यू इयर मनाने चले है !!
घर में बाट जोहते माँ बाप
बच्चे रात में पार्टिया मनाने चले है !
बीबी बच्चे घर में कर रहे इंतज़ार
साहब दारु के पैग लगाके नाले मिले है !!
कैसे अजीब शौक चर्राये
देखो आज मेरे देश के युवाओ को
मिटा कर अपनी जिंदगी
जश्न में खुशिया मनाने चले है !!
क्या सीखा बीते वर्ष से
इसका किसी को कोई भान नही
बिना कोई योजन बनाये
आने वाले पल का स्वागत करें चले है !!
कर शपथ, ले कुछ सीख
बीते कल को बनाकर हथियार
रख भविष्य की नीव,
जीवन की नैया तब कही पार लगे है !!
होता है कितना अन्याय,
कितना अत्याचार, कितनी इज़्ज़त लुटे है
नये साल की खुशियो के नाम
देश में चरस गांजे का व्यापार जो चले है !!
क्या होगा झूठी खुशिया से
जब तक इंसानियत हर दिल न जगे है
खुशियो का असली आनंद तब है
देश का हर बच्चा, बच्ची फूल बनकर खिले है !!
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–०–डी. के. निवातियाँ –०–
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