मैं पशेमां हूँ …… (ग़ज़ल)
प्यारी बिटिया दामिनी (ज्योति सिंह ) को समर्पित एक ग़ज़ल )
क्या कहूँ मेरी बेटी ! मैं बहुत परेशां हूँ ,
मिल ना सका तुझे इन्साफ ,मैं पशेमां हूँ .
तेरे गम से मेरा गम ऐ लाडो ! जुदा नहीं,
तेरे अश्को -आहों में लहू की मानिद रवां हूँ .
तेरी दर्द भरी चीखें अब भी मैं सुनती हूँ ,
जाने ज़माना क्यों हो रहा बेहरा ,हैराँ हूँ .
इन सियासत दारों को तो अपनी पड़ी है ,
इन्हें तो शर्म नहीं , मगर मैं शर्मिन्दा हूँ .
उस वेह्शी /दरिन्दे को इतनी हिफाज़त !
अंधा कानून है यह और मैं क्या कहूँ ?
हरे रह गए तेरे ज़ख्म , और रूह बेचैन ,
जो ना सिल सका में वोह तेरा चाक दामां हूँ .
तनहा -तनहा से तेरे माता-पिता , गमगीन ,
टूटे हुए ,बिखरे हुए अरमानो को लिए देख रही हूँ.
खवाब तो तूने भी देखे थे बेशुमार , ऐ दुखतर !,
मैं तेरे अधूरे ,टूटे हुए ख्वाबो का आईना हूँ .
ऐसे बेइंतेहा ज़ुल्म आखिर कब तक सहेगी बेटियां ?
आज हर इंसा के दिल से उठता मैं एक सवाल हूँ .
मौजूदा हालात से परेशां होकर पूछती है ” अनु ”
कहाँ है खुदा ! लौट आ !उससे करती मैं गुजारिश हूँ .
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