मजहब बदलने से इन्सान नहीँ बदलते, कट्टरता से मोहब्बतोँ के पैगाम नहीँ बदलते, धर्म की दीवारेँ गिरा इन्सानियत के घर आना सिर्फ, मन्दिरोँ मेँ बैठने से कर्मोँ के अन्जाम नहीँ बदलते।
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