ग़ज़ल
कौन अंगारो से बचकर के निकल जाता है
हांथ शोलो पे जो रखता है वो जल जाता है
ज़िन्दगी में वो बहुत आगे निकल जाता है
वक़्त के सांचे में इंसान जो ढल जाता है
खुद की नाकामी को किस्मत का लिखा मत कहिए
कोशिशो से तो मुक़द्दर भी बदल जाता है
मै मनाऊँ तो उसे कैसे मनाऊ या रब
मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है
जब उठा लेती है मां हाँथ दुआ की ख़ातिर
मेरे रस्ते से तो तूफ़ान भी ट ल जाता है
कौन सी बात पे इतराये हुए बैठे हैं
शाम होते ही ये सूरज भी तो ढल जाता है
ऐसे लोगो पे ”रजा” कैसे भरोसा करलें
करके वादा जो हमेशा ही बदल जाता है
9981728122
Read Complete Poem/Kavya Here कौन अंगारो से बचकर के निकल जाता है GAZAL SALIM RAZA REWA
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