oo ग़ज़ल oo
ज़ख्मे दिल भी दिखा न सकेंगे बात कुछ भी छुपा ना सकेंगे .
आग दिल में लगी इस तरह से आंसुओं से बुझा न सकेंगे oo
दे दिया दर्द ग़म और धोका ये जहाँ उन्हें रोंका टोका.
चाहता हूँ भुला दूँ उसे पर याद उसकी भुला ना सकेंगे oo
गर परिन्दों सी परवाज़ होती ज़िन्दगी खुशनुमां आज होती .
उड़ के बैठूँ गे छत पे तुम्हारे लोग हम को उड़ा न सकेंगे oo
चोट खाकर भी हँसता है वो तो दुश्मनों से भी मिलता है वो तो .
उसकी चाहत मुहब्बत शराफत ये अदा उसकी पा न सकेंगे 00
उनकी छनछन छनकती वो पायल उनका भीगा बदन कर दे घायल.
उसकी आँखों का जादू चला तो अपने दिल को बचा ना सकेंगें oo
खूं ख़राबा कही धोकेबाज़ी लूट हत्या कही जालसाज़ी .
ये तो शैतां की जैसी है फ़ितरत ऐसी आदत बना न सकेंगे oo
हर नज़र अब फरेबे नज़र है हर जुबां साज़िशो की भँवर है .
ऐसे माहौल में ऐ “रज़ा” हम बोझ सच का उठा न सकेंगे oo
shayar salim raza rewa 9981728122
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