कविता। यह कैसा प्रेम जाल ?
यह कैसा प्रेमजाल ?
खिली मधुर मुस्कान
स्मृतियां,मन,गाते तन-गान
आह्लादित है प्रसून वह चेहरा
अरे! भावनाओं की ओट
शिकारी बना शिकार
पगडण्डी के उस पार
झूठे प्रलोभन झूठा अनुमान
प्रेमी खेलता खेल
भावनाओं से मेल,बेमेल
सहनशीलता की अवनत आँखे
तकटकिओ की धार ,बौछार
होने लगा देह व्यापार
पगडण्डी के उस पार
चलो गाये प्रेम गीत
भरे दर्द में दुःख की आहें
कंटकांकुरित दूर जटिल है राहें
सहता कौन ? पवित्रता मौन
विचलित डिगा ईमान मान,सम्मान
फिर हुआ कुकृत्य ,संहार
पगडण्डी के उस पार
@राम केश मिश्र
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