तख्त तेरा ताज तेरा, चिर विजित आकाश तेरा, धरा पर ऊँचाईयाँ बहुत पा ली, अब क्षितिज को इन्तजार तेरा, मूढ-मन मानव को आस है तुमसे, फिर से लायेगा वही सुनहरा सवेरा, मत ठहर इस नदिया की शांत लहर पर, अविजेय समन्दर के ह्रदय मेँ डाल डेरा।
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