सविता वर्मा की कविताएं
1
खुद की तलाश मे भटकती दर-बदर
मिल जाए मकाम, इस आस में खोजूं इधर-उधर
भटक रही तन्हा खर्च करती खुद को
तुमको सुन रही हूं, तुमको गुन रही हूं
सुन लूं, गुन लूं, तब तुमसे पुछूं
इतना ही है अम्बर मेरा, इतनी ही है जमीं मेरी
खर्च सुबह खर्च शामें इतनी ही है कीमत मेरी
2
भावना शून्य चेहरों पर
तमाम कलाकारी इस मन की
शब्दों से घोलते हैं रस
आखों की बेईमानी इस मन की
छोटे से पोखरे की छोटी सी मछली हम
समन्दर सा कौतूहल इस मन का
भाव विहीन अम्बर में
सारी कशीदाकारी इस मन की
अभिलाषा है अर्पण कर दूं
सारी अस्थिरता इस मन की
इस सहज जीवन में
सारा खोखलापन इस मन का
क्यु आते तुम ख्यालों में थम थम के
थोडा ज्यादा फिर और ज्यादा आते हो याद तुम
हृदय में उतरते-उतरते आत्मा को भिगोने लगे तुम
ये शिद्दत, ये उद्विग्नता,ये विडम्बना
क्या यही हो मेरे हिस्से में तुम
3
नजर न लग जाये नजर को जिससे देखते हो तुम
निखर जाता है चेहरा जब निहारते हो तुम
मन के एक एक तार को महका देते हो तुम
ये पवित्रता ये प्रेम,ये तड़प
क्या यही हो मेरे हिस्से में तुम
मेरे ही रहना सदा ये चाहत हो तुम
उडते हुए बादल को कैद करने की तम्मना हो तुम
पूरी न हो सके ऐसी दुआ हो तुम
ये आशा, ये निराशा, ये आरजू
क्या यही हो मेरे हिस्से में तुम
ये सब केवल मेरे लिए है
या अंशमात्र भी तुम्हारे लिए भी
चांदनी बिखेरती रातो में हम मिले
मन का वो चहकना
खिलखिला कर वो हंसना
ये सब केवल मेरे लिए है
या अंशमात्र भी तुम्हारे लिए भी
मन की गिरह खुलने को बेताब
जी रहा होता जी लेने का जज्बा
धडकनें हो जाती हैं तेज
ये सब केवल मेरे लिए है
या अंशमात्र तुम्हारे लिए भी
छोड देते, तोड़ देते, मेरी दी हुइॅ बंदिशे
ये रीतियां ये परम्पराएं
मचल जाता तुम्हारा भी मन
ये सब केवल मेरे लिए है
या अंशमात्र तुम्हारे लिए भी
खुशबू की डिबिया की तरह
महकती हूं, गमकती हूं
तुम्हारे एहसास से
ये सब केवल मेरे लिए है या अंशमात्र तुम्हारे लिए भी
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