चली थी ज़िंदगी जिन उसूलों पे अब तक,
और न जाने चलेगी ये कब तक ।
बदल गया ज़माना अब उसूल भी बदलने होंगे,
वर्ना खायेंगे खोखा, और रोते रहेंगे ।
आइना नया बनाना पड़ेगा,
नज़रों से सबकी छुपाना पड़ेगा ।
असलियत देखा दे जो इंसा की मुझको,
संभल जाऊंगा , बचा लूंगा खुदको ।
जियूँगा ज़िंदगी, शर्तों पे अपनी,
सुनूंगा सबकी, करूँगा बस दिलकी ।
अच्छा हुआ तो मिसाल बनूँगा,
बुरा हुआ तो किसे से न कहूँगा ।
छंट जायेंगे दोस्त, परिजन और कुछ चाहने वाले,
बच जायेंगे जो, वही होंगे साथ चलने वाले ।
बहुत कम भी हौ, तो भी गम ना करूँगा,
ख़ुशी से जियूँगा, कभी शिकवा ना करूँगा ॥
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