मैं और मेरी तन्हाई
कितने ही सावन बीते है
पतझड़ भी कई देखे है
बारिश के उन हर लम्हों को जीते हुए
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!
रिश्तों के दायरे में सिमट गयी
कितने हे अरमान यूँहीं कभी
आँखें मूँदें कोने में लिपटी
कितने ही ख़याल यूँहीं कभी !
उल्फतों को हँसकर जी लेते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!
उम्र के हर पड़ाव पर
नयी पुरानी कुछ चुनोतियाँ
मन में सवालों को उलझाती
कुछ अनचाही मजबूरियाँ !
बेवजह बिखरकर सँभलना जानते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!
हम अपना कसूर ढूँढ़ते रहे
अजनबी जस्बातों के महफ़िल में
सुकून की इतनी फितरत नहीं
के साथ दे जाए मुश्किल में !
अपने हालात पे कभी नज़र लग जाते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!
कोई करे वादों का हिसाब
किसीका आरजू फरमान बना
इम्तिहान लेता सारा जहाँ
तो दुआ भी जंजीर बना !
इस कश्मकश को जीने की वजह बनाते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!
दामन के धागों में अब भी
कुछ रंग अधूरे है
ख़ामोशी के सिलवटों में आज भी
कुछ अल्फाज़ अधूरे है !
जिंदा रहकर भी होश गँवारा लगते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!
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