सुनो न,
देखो बुन रही हूँ
स्वेटर तुम्हारे ख्यालों का
मन की सलाइयों से
एक एक फंदा तुम्हारी यादों का
रेशम सा सुनहरा
जो तुमने दिया था अब वो धागा न रहा
पहनोगे न तुम।।
सुनो न
देखो सुन रही हूँ
धुन तुम्हारी चुप्पी की
लबों पे जो सजी थी बांसुरी सी
और सौत सी तकलीफ देती
अदृश्य वायु से तुम्हारे शब्द
जो कभी कहे ही नही गए
लिख रही हूँ एक गीत उनसे
एक नई सरगम गढ़ूंगी
सुनोगे न तुम।।।।
सुनो न
देखो चुन रही हूँ
फूल तुम्हारी मोहब्बत के
भर रही हूँ पोटली में
जो बीज बोया था मन की कोरी माटी मे
उग गया है अब उफ़्फ़ कांटे भी हैं
पर कोपलें भी फूट पड़ी हैं
रक्तिम लालिमा सी लिए
पर गूँथ डालूंगी इन्हें मन की माला में।
अपनाओगे न तुम।।
“सरगम अग्रवाल”
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