-: आज़ाद मरते नही :-
ग़ुलामी की बेड़ियों में रहना ,
उन्हें एक पल भी गवारा नही ।
कहा जब दहाड़कर -विरोधियों को
आज़ाद हूँ मैं , ईमान मेरा अभी मरा नही ।।
पर्वत शिखर की भाँति
थे उनके हौशले, इरादे
कहते सभी -अभी बच्चे हो
सबको दिखाई कमर तोड़ वक्त की,
बोल नही थे , जो कंठ से निकले उनकी
थी वो सिंह की दहाड़ ,
गर्जना थी वो खोलते रक्त की ।।
उनके मुख से निकला हर स्वर,
तरुणों में जोश भरता था,
देश का नौजवान, बच्चा – बच्चा ,
खुद को आज़ाद समझता था,।।
मृत्यु से डरना ,जिसने सीखा जरा नही ।।
आज़ादी का जोश ,उनके सीने में,
ज्वालामुखी बनकर धड़कता था।
बड़े बड़े दुश्मनों के सम्मुख भी,
पठ पर हाथ- मूँछो पर ताव मारता था ।।
इतिहास का था वो काला दिन
अल्फ़्रेड पार्क में घटना जो घटनी थी,
एक आज़ाद शेर के शिकार को ,
अंग्रेज नही,निकली गीदड़ को टोली थी ।।
दुश्मन के हाथो पकडे जाना ,
उनके स्वाभिमान को काबुल न था ।
खुद को मारी जब गोली
चहरे पर तनिक शिकन न था।।
“मरते नही आज़ाद”
(लेखक:- सोनू सहगम)
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