जिंदगी की राहो में ठोकरे खाते रहे, चलते रहे ! कदम – कदम पर गिरते रहे फिर सम्भलते रहे !! दास्तान -ऐ- जिंदगी शाम की तरह ढलती गयी ! उम्र अपनी मजिल पा गयी हम खड़े हाथ मलते रहे !!
! ! ! D. K. Nivatiya.
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