ग़र सच्ची है मोहब्बत मेरी, उसे एहसास तो होगा,
मोहब्बत का ये मारा दिल, इक उसके पास तो होगा,
तसव्वुर में वो जिसके खो के थोड़ा चैन पाते हों,
चलो हम ना सही, कोई यूं उनका ख़ास तो होगा।
भले ठोकर ही मारें वो समझ के राह का पत्थर -२
वो ठोकर से मिला हर ज़ख़्म लेकिन ख़ास तो होगा।
मोहब्बत को तेरी सिचुंगा अपने आँशुओं से मैं,
गुलिश्तां दिल का ये मेरा, यूहीं आबाद तो होगा।
के अब तो जान लेके हम हथेली पर निकलते हैं-२
यूँ जी के भी करेंगे क्या, तेरा ना साथ जो होगा।
बड़े मरते हैं आशिक़, हम भी मर जायें तो क्या गम है-२
ज़माने भर मोहब्बत का फ़साना याद तो होगा।
*विजय यादव*
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