ब्रह्मांड सा विस्तार
हो रहा हैं हर दिन
इंसान का सोच,
मानव का जीवन
कहीं ऐसा तो नही
इस विज्ञान युग में
हम धरती को हि
भुल तो नही रहे हैं !
हमसब के सामने प्रश्न हैं
मनुष्य का स्थान कहाँ हैं ?
किस दिशा में अग्रसर हैं ?
शायद इसका उत्तर हैं भी या नही
वक़्त आ गया हैं
हम इस बारे में सोचे !
हमे याद रखना होगा
कुदरत कि भी सीमाए हैं
जो हमारी ज़िंदगी से जुडी हैं
हम इन्ही से हैं
और इन्ही में विलीन होना हैं !
क्या हमारा अस्तित्व कहीं और संभव हैं
अगर नही तो इस प्रकृति से
हमे प्यार क्यो नही,
दूसरी दुनियाँ होगी
पर कब कहाँ किसे पता
पर इस दुनियाँ को
कैसे बचाए सोचे
उचित कदम कि ओर फ़ैसला ले
अन्यथा परिणाम आप सबके सामने हैं !!
**Dushyant kumar patel**
Read Complete Poem/Kavya Here वक़्त आ गया हैं !!
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