मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

शायरी संग्रह प्रथम खंड ---पं.राजन कुमार मिश्र।

(क)
बगीचे में खिली गुलाब की फूल हो तुम,
बसंत में चली सुहानी हवा की बयार हो तुम।
रजनी में चांद सी मेहमान हो तुम,
मोहब्बत में इस हमसफर की पहचान हो तुम।

(ख)
मेरी उड़ान में तेरी मुस्कान है।
तेरी हंसी मे मेरी खुशी है।
मेरी निगाहों में तेरी नजरे सजी है।
मैंने दिल से तेरी धड़कन सुनी है।

(ग)
तू मेरी मै तेरा,
आखिर कब होगा ये सबेरा।
रात कटती नहीं दिन गुजरता नहीं,
तेरे ख्यालों में ये लम्हा बिछड़ता नहीं।

(घ)
साँसों की हुकूमत,
आँखों की नज़ाकत,
इन फिजाओं से कहती है,
जीने दो, जीने दो।
मेरी क्या अवकात,
हुकूमत है इनकी,
चलने दो, चलने दो।

(च)
तेरी तन्हाई में मेरी अंगड़ाई छिपी है,
क्या करूँ ये मेरी बेवफाई है।
माना मुकद्दर कुछ और चाहता है,
लेकिन ये दिल तेरा इरादा आजमाता है।

—पं.राजन कुमार मिश्र।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here शायरी संग्रह प्रथम खंड ---पं.राजन कुमार मिश्र।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें