बुधवार, 16 दिसंबर 2015

करुण व्यथा

आज १६ दिसम्बर है। आज के दिन हि निर्भया के साथ दिल्ली मे दिल दहला देने वाली बारदात हुइ थी। आपलोग शायद इसे भुल गये है मै उसी को याद दिलाने कि कोशिश कर रही हू।
राजधानी दिल्ली कि रात १६ दिसम्बर, फटती है,
धरती और गिरती है, अम्बर लिखी जाये ना, ऐसी कही जाये, ना ऐसी व्यथा है।
कह्ते हि उतरे आखो मे समुन्दर सजा क्या दू,
उसको जो करे जुल्म भयन्कर धधकती है जवाला नारी मन के अन्दर ।
जिस गर्भ जन्मे है बाल गोपाल रे उसी गर्भ पर किया बार बार प्रहार रे,
भारत मे जन्मी जहा बहती गन्गा प्यासी मरी वो पानी कई बार मान्गा ।
जिस गोद मे बरसो बैथा के खिलाया पिलाया,
जिस आचल तले मिथी निन्द सुलाया ।
पल मे भुलाया उसे किया तार तार देखे ना देख पाये सन्सार,
जहा पोरस ने रखी बहना कि लाज वही लुटता है दरिन्दा बन के आज ।
लज्जा आभुसन नारी सन्स्कार है मित्यु भी रोये होके शर्मसार,
जब भी कभी तुजको सिने से लगाया है क्या कभी तुजको विश भी पिलाया है,
फिर क्यौ देखती गिरता सामाज है,
टुटती है परम्परा चिखता रिवाज है ।
नारी डरो नही अब करो खुदको तैयार बनो पद्माबती धरो लच्मिबाइ अव्तार,
खुदमे जगाओ आत्म्बल, विश्वास, ज्हुको नही अब करो पापीयो का नाश ।
तुम हि हो दुर्गा तुम हि हो भावानी अबला कही जाये फिर क्यू ये नारी,
जागो मेरी माता जागो मेरी बहना वर्ना बानेगा घर दरिन्दो का अपना ॥
ये कविता जिन लोगो तक पहुची है वो और लोगो तक इसे पहुचा दे आज प्रत्येक भारतवासी और भारतीय नारी यह सन्कल्प ले कि हुम अपने बहन बेटीयो या अन्य किसी स्त्री के साथ यह अन्याय नही होने देन्गे भारत निर्मल, स्व्च्च, गौरबपूर्न इतीहास रहा है और हमेशा रहेगा हम सभी भारतवाशी इसके लिये बचनबध है ।
बबली प्रियादर्शी
(9546494700)Untitled-1

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here करुण व्यथा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें