दिल जबसे टूटा है
बिखरी है अरमान कहीं
और खोया है चैन कहीं
अब तो तन्हाई राते है
कभी रोते है , कभी मुस्कुराते है |
अकेले छुप -छुप के
उन्हे देखते है !
खमोश है ज़िंदगी
जुबाँ अब दर्द बयां करती नहीं
याद जब आती है
कहीं छुप के रो लेते है |
इस बात का ऐहसास भी है
और हम जानते भी है ,
वो अब किसी और का है
वो खुश है मुझसे दूर रहकर
ये बात जानकर हम
हंसके दर्द सह लेते है |
वो पगली न समझी
मेरी चाहत को , तो क्या हुआ ?
पर नहीं हम उनसे खफ़ा
उस बेखबर की पता
आज भी हम उनकी सहेलियों से
पूछ लिया करते है |
उम्मीद क्यो करे भला उनसे
ज़िंदगी में लौट के आने की
अब उनकी चाहत को चाहत समझकर
हम प्रेम ज़हर पी लेते है
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Dushyant kumar patel
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