सोमवार, 13 अप्रैल 2015

बस ज़रा प्यास से

किसी दिन
जिंदगी का लैपटाॅप यूं ही खुला रह गया
और मैं चला गया
दूर कहीं किसी भूगोल में
सोचो कैसे खोल पाओगे मेरी जिंदगी का लैपटाॅप
सारा का सारा डेटा
तुम्हारे सामने से गायब हो जाएगा,
कहां से लाओगे मेरी जिंदगी का डेटा
कहां खाया ग़म,
कहां किसने दी चोट
कहां निकली आह
कहां निकले आंसू,
सब के सब खजाने मेरे लगाए पासवर्ड में कैद रहेंगे।
सोचता हूं
जाने से पहले
शेयर कर दूं किसी न किसी से
सारे पासवर्ड
ताकि जब चला जाउं
किसी दिन,
बिन बताए
अंधेरी रात भोर बिभनसारे
तो तुम परेशां मत होना।
जिंदगी के लैपटाॅप का पासवर्ड
किसी देकर जाउं
कौन संभाल कर रखेगा
सुरक्षित
मगर कितना सुरक्षित
किससे सुरक्षा बंधु
भाई से या बहन से
दोस्त से या संगिनी से
जिदगी लैपटाॅप ही होती तो कोई बात थी,
यह तो बिन पासवर्ड के भी खुल जाती है
बस ज़रा प्यास से पुचकार लो
बुला लो अपना समझ कर।

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