मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

सनसनी

ग़ज़ल

दूर तक इक सदा गूँजती रह गयी,
हादसा टल गया,सनसनी रह गयी !

फिर अधूरा रहा ये सफ़र इश्क़ का,
इक दफ़ा मुझमें फिर कुछ कमी रह गयी !

रात की फ़ितरतें हैं जुदा आजकल,
चाँद डूबा मगर चाँदनी रह गयी !

अब्र से बुझ गयी प्यास कायनात की,
बस मेरे होंठों पे तिष्नगी रह गयी |

दे गया कुछ नया जाते जाते ‘सहर’
ख़ुद फ़ना हो गया शायरी रह गयी |

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here सनसनी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें