ग़ज़ल
दूर तक इक सदा गूँजती रह गयी,
हादसा टल गया,सनसनी रह गयी !
फिर अधूरा रहा ये सफ़र इश्क़ का,
इक दफ़ा मुझमें फिर कुछ कमी रह गयी !
रात की फ़ितरतें हैं जुदा आजकल,
चाँद डूबा मगर चाँदनी रह गयी !
अब्र से बुझ गयी प्यास कायनात की,
बस मेरे होंठों पे तिष्नगी रह गयी |
दे गया कुछ नया जाते जाते ‘सहर’
ख़ुद फ़ना हो गया शायरी रह गयी |
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