मिलते है जज्बात दिल का मिलना अभी बाकी है !
एक खयालात अपने,पर कुछ कसर अभी बाकी है !!
ख़्वाहिश उनको भी उतनी हमे अपना बनाने की !
फिर न जाने क्यों इजहार करना अभी बाकी है !!
रहते है जो इर्द -गिर्द सदा खवाबो में ख्यालो में !
उनका हकीकत में हमसे टकराना अभी बाकी है !!
वैसे तो मिलते है कई बार हम अजनबी बनकर !
एक शाम अपना बनाकर बिताना अभी बाकी है !!
चाहकर भी अपना बनाने से कतराते है वो “धर्म” !
उनको हक अपना हम पर जताना अभी बाकी है !!
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डी. के. निवातियाँ _________@@@
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