सोमवार, 13 अप्रैल 2015

अभी बाकी है

      मिलते है जज्बात दिल का मिलना अभी बाकी है !
      एक खयालात अपने,पर कुछ कसर अभी बाकी है !!

      ख़्वाहिश उनको भी उतनी हमे अपना बनाने की !
      फिर न जाने क्यों इजहार करना अभी बाकी है !!

      रहते है जो इर्द -गिर्द सदा खवाबो में ख्यालो में !
      उनका हकीकत में हमसे टकराना अभी बाकी है !!

      वैसे तो मिलते है कई बार हम अजनबी बनकर !
      एक शाम अपना बनाकर बिताना अभी बाकी है !!

      चाहकर भी अपना बनाने से कतराते है वो “धर्म” !
      उनको हक अपना हम पर जताना अभी बाकी है !!
      !
      !
      !
      डी. के. निवातियाँ _________@@@

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