वो वहीं खड़ा रहा
  शायद साल भर,
  शायद ताउम्र
  लेकिन वह हारा नहीं
  खड़ा ही रहा।
  पेड़ की तरह,
  लैंप पोस्ट की तरह
  जिसने सहा
  बरसात
  गरमी
  पूस की रात।
  पेड़ ने कहा
  क्यों साहब
  अब तक यहीं के यहीं हो
  देखों चले गए सारे के सारे
  तुम वहीं के वहीं खड़े हो।
  देखो न पहाड़ कब से तुम्हें बुला रहा है
  बुला रही है चिनाब
  पुकार रहा है समंदर की बाहें
  ज़रा पास होकर आओ
  बेइंतेहां करते हैं मुहब्बत
  देखों तो नदी की धार पर लिखी हैं स्मृतियां। 

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