मन तो मेरा भी करता है
  कविता लिखूँ,
  चारों दिशाओं पे,
  मुस्कुराती फिज़ाओं पे,
  महकती हवाओं पे,
  झूमती लताओं पे,
  बल खाती नदियों पे,
  कलकल बहते झरनों पे,
  हिमालय के चरणो पे।
  पर जब भी देखता हूँ,
  आतंकी मंजर को,
  धमाकों के खंजर को,
  लुटती पिटती कलियों को,
  धूँए भरी गलियों को,
  नक्सलवादी नारों को,
  खुले फिरते हत्यारों को।
  जब भी देखता हूँ,
  सिसकते हुए बचपन को,
  बिकते हुए यौवन को,
  धक्के खाते बुढ़ापे को,
  भारत में फैले हुए स्यापे को।
  देखता हूँ जब भी,
  फांसी लटकते हुए किसान को,
  समय से पहले बुढ़ाते जवान को,
  धक्के खाते बेरोजगार को,
  घोटालों के अंबार को।
  तो
  मैं लिख नहीं पाता हूँ,
  कामिनी के केशों पे,
  दामिनी के भेषों पे,
  बल खाती चोटी पे।
  नहीं लिख पाता मैं,
  कुर्ती और कमीज पे,
  सावन वाली तीज पे,
  आँखों वाले काजल पे,
  पाँवों की खनकती पायल पे।
  मुझे दिखती है,
  सिर्फ सिसकती माँ भारती,
  जो हरदम मुझे पुकारती।
  इसलिए
  मैं लिखता हूँ केवल,
  सैनिक की साँसों को,
  माँ के उर में चुभती फाँसों को,
  बच्चों के बचपन को,
  बूढ़ों की उम्र पचपन को,
  मैं लिखता हूँ सीता सतवंती को,
  सावित्री सी लाजवंती को,
  द्रौपदी और दमयंती को।
  युगधर्म पर लिखना मेरा काम है,
  तुम्हें मुबारक हो शृंगार,
  देशधरम पर लिखना ही,
  मेरी शान है। 
Manoj Charan “Kumar”
  Mo. 9414582964

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