सोमवार, 29 जून 2015

।। गज़ल।।मजबूर है कोई।।

।।गजल।। मजबूर है कोई ।।

तेरी खुशियो के लिये ही दूर है कोई ।।
ये दोस्त तेरी दोस्ती में मजबूर है कोई ।।

और भी वजह थी तुमसे दूर जाने की ।।
पर तेरी बेखुदी में मगरूर कोई है ।।

क़द्र करता हूँ तुम्हारी शौक की हमदम ।।
बस तुम्हारी गम में खुद चूर है कोई ।।

सबूत माग सकते हो तुम मेरी बेगुनाही का ।।
पर यकीनन तेरे प्यार में बेकसूर है कोई ।।

दर्द है या है तेरे इंतकाम का मंजर ।।
या तेरी बेवफाई का नया दस्तूर है कोई ।।

……… R.K.M

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