सोमवार, 15 जून 2015

पापा जी

आंसुओं में आँखों के सपने गिर के चकनाचूर हुए।
पास नहीं कोई भी ख़ुशी तुम जिस दिन से दूर हुए।

महफ़िल सजी है यादों की फिर भी बस तन्हाई है।
एहसास तुम्हारा हरपल है साथ तुम्हारी परछाईं है।

कोशिश नाकाम हो जाती है तुमसे गले लग जाने की।
तुम्हें छूना भी अब मुश्किल है कितने हम मजबूर हुए।

आंसुओं में आँखों के सपने गिर के चकनाचूर हुए।
पास नहीं कोई भी ख़ुशी तुम जिस दिन से दूर हुए।

माँ के माथे की बिंदिया भी तुम अपने साथ ले गए।
मन-सावन भी अब सूख गया,तुम बरसात ले गए।

इंतजार में तुम्हारी सूनी आँखे,चेहरे की रंगत खो गई।
मुड़ कर भी न देखा तुमने क्यूँ तुम इतने मगरूर हुए?

आंसुओं में आँखों के सपने गिर के चकनाचूर हुए।
पास नहीं कोई भी ख़ुशी तुम जिस दिन से दूर हुए।

वृक्षों की डाली सूख गई और पौधे भी मुरझा गए।
पशु-पक्षी सब व्याकुल हैं दुःख के बादल छा गए।

गाय भी द्वारे पर आ कर भूखे ही लौट जाने लगी।
और किसी की जगह नहीं तुम हृदय में अपूर हुए।

आंसुओं में आँखों के सपने गिर के चकनाचूर हुए।
पास नहीं कोई भी ख़ुशी तुम जिस दिन से दूर हुए।

वैभव”विशेष”

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